बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), कांके, रांची के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह की पहल पर फरवरी, 2022 में विवि के बायोडाइवर्सिटी पार्क एवं उद्यान विभाग में गर्म जलवायु में उपयुक्त सेब प्रभेदों पर अनुसंधान कार्य आरंभ किया गया है।
दोनों स्थानों पर अनुसंधान के लिए सेब के चार प्रभेदों के कुल 140 पौधे को पायलट ट्रायल के रूप में लगाया गया था।
जिसे एक वैज्ञानिक डाटाबेस तैयार को करने के लिए पायलट ट्रायल के रूप में शुरू किया गया।
विवि के बायोडाइवर्सिटी पार्क एवं उद्यान विभाग के फार्म में सेब के एन्ना, स्कारलेट स्पर, जेरोमीन एवं हरमन – 99 प्रभेदों को लगाया गया है।
जिसे वाईएस परमार वानिकी एवं उद्यान विश्वविद्यालय, नवनी, सोलन, हिमाचल प्रदेश से मंगाया गया था।
बीएयू कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने शुक्रवार को बायोडाइवर्सिटी पार्क में लगे सेब के पौधों का अवलोकन किया।
मात्र 14 महीनों में ही पौधों के विकास, पौधे पर फुल एवं फल लगने के आरंभिक प्रदर्शन को देख कुलपति काफी उत्साहित एवं आशान्वित है।
उन्होंने गर्म जलवायु में उपयुक्त सेब प्रभेदों के पौधे के विकास को उत्साहवर्धक बताया।
कहा कि आने वाले दिनों में वैज्ञानिकों द्वारा शोध अध्ययन के सार्थक एवं सकारात्मक परिणामों का आकलन किया जायेगा।
पांच वर्षो के बाद ही पौधे बढ़िया फल देने योग्य हो पाएंगे।
अब आने वाले दिनों में इन चारों प्रभेदों में लगे फल का रूप, आकार, रंग, स्वाद एवं गुणवत्ता पर वैज्ञानिकों द्वारा शोध अध्ययन किया जायेगा।
इन मापदंडो पर खरा उतरने, प्रति पौधा अच्छा उत्पादन एवं लाभ और राज्य की कृषि पारिस्थितिकी के अनुकूल होने पर निश्चित रूप से यह झारखंड के लिए वरदान साबित होगी।
कुलपति ने बताया कि पलामू जिले के बहुत सारे किसान सेब की खेती को लेकर काफी उत्सुक है।
किसान अपने स्तर से ही पौधे को मंगाकर अपने खेतों में पौधारोपण कर रहे है. सेब की सफल खेती हेतु वैज्ञानिक डाटाबेस का होना जरुरी है।
किसानों की मांग और उत्सुकता को देखते हुए क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, चियांकी, पलामू के फार्म में भी इस वर्ष फरवरी 2023 में सेब के चार प्रभेदों पर अनुसंधान प्रारंभ कराया गया है।
इस केंद्र में चार प्रभेदों यथा – एन्ना, हरमन – 99, गोल्डन डेसोर्ट एवं माईकल को लगाया गया है।
इस अनुसंधान कार्य को ड्रीप सिंचाई प्रणाली के माध्यम से सिंचाई के साथ प्रारंभ किया गया है. केंद्र के वैज्ञानिक ई प्रमोद कुमार को अनुसंधान की जिम्मेवारी दी गयी है।
सेब की खेती के शोध से जुड़े उद्यान वैज्ञानिक डॉ अब्दुल माजिद अंसारी ने बताया कि आरंभिक तौर पर पार्क में 140 पौधे लगाये गये थे, इनमें 12 पौधे बढ़ नहीं पाये और करीब 90 प्रतिशत पौधों का विकास काफी अच्छा है. मात्र एक वर्ष दो महीनों में ही पौधे का काफी अच्छा विकास देखने को मिल रहा है.
डॉ अंसारी ने बताया कि एन्ना प्रभेद के पौधे का विकास सबसे अच्छा है तथा फुल व फल भी लग चुके है. इस वर्ष फरवरी माह में ही एन्ना प्रभेद के पौधों में फुल लगने लगे और अप्रैल माह में पौधे पर फल भी लगने लगा।
वहीं सेब की अन्य तीन प्रभेद जैसे – स्कारलेट स्पर, जेरोमीन एवं हरमन – 99 में अभी फल नहीं लगे हैं. एन्ना प्रभेद में अध्ययन के लिए कुछ पेड़ो में फल रहने दिया गया है और अन्य पौधों के फल को हटा दिया गया है. अभी सभी पौधे काफी छोटे है और करीब पांच वर्षो के बाद ही पौधे बढ़िया फल देने योग्य हो पाएंगे. इसी वजह से अभी फल नहीं लिया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि कुलपति ने उन्हें एवं विभागाध्यक्ष (उद्यान) डॉ संयत मिश्रा के साथ तत्कालीन कंसलटेंट (नाहेप) डॉ अंगदी रब्बानी को इस शोध कार्य की जिम्मेवारी दी थी।
रांची की गर्म जलवायु में सेब की खेती पर पहले वर्ष आशातीत अच्छा शोध परिणाम देखने को मिला है।