कृषि एवं तकनीकी विकास से जुड़ी राज्य की एकमात्र संस्थान बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू)’ को पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम 2001 के तहत भारत के राजपत्र (गजट) में झारखंड राज्य के नोडल केंद्र के रूप में अधिसूचित किया है। इस सबंध बीएयू को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीभी एंड एफआरए) के महा पंजीकार ने सूचित किया है।
इस अधिसूचना के मुताबिक बीएयू के निदेशालय अनुसंधान के माध्यम से पुरे झारखंड राज्य क्षेत्र में विभिन्न फसलों, फल, सब्जी, फूल, पौध रोपण सामग्री एवं मसाला फसलों तथा पौधा से सबंधित मुआवजे के दावे का अग्रसारण पीपीभी एंड एफआर को किया जा सकेगा। इस अधिसूचना के जारी होने के उपरांत तत्काल प्रभाव से बीएयू केंद्र के अधिकार क्षेत्र यानि संपूर्ण झारखंड प्रदेश के गांव या स्थानीय समुदाय की ओर से किसी भी व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह (चाहे सक्रिय रूप से खेती में लगे हों या नहीं) या किसी सरकारी या गैर-सरकारी संगठन और जिन्होंने किसी भी पंजीकृत किस्म के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो, के द्वारा दावा दायर किया जा सकता है। सबंधित किसी भी दावे के संबंध में किसानों/कृषक समुदायों को कोई भी शुल्क देय नहीं होगा।
निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह ने बताया कि भारत सरकार ने स्थानीय पौधों की किस्मों की सुरक्षा एवं संरक्षण तथा पौधों की नई किस्मों के विकास के लिए पीपीभी एंड एफआर अधिनियम 2001 को लागु किया है। यह अधिनियम नई फसल पौध किस्मों के विकास के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण, उनमें सुधार तथा उन्हें उपलब्ध कराने में किसानों के योगदान को मान्यता प्रदान करता है। डॉ सिंह ने कहा कि किसानों को स्थानीय किस्मों के पंजीयन हेतु अपना आवेदन का उस क्षेत्र विशेष के जिला कृषि पदाधिकारी से अनुमोदन तथा उस क्षेत्र के कृषि विज्ञान केंद्र प्रभारी से फार्म पीवी -1 के माध्यम से पत्राचार के लिए स्वीकृति लेनी होगी।
कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने प्राधिकरण द्वारा नोडल केंद्र बनाये जाने पर ख़ुशी जताया और इसे राज्य में किसानों के हित में अग्रणी भूमिका के निर्वहन का एक अनूठा अवसर बताया। उन्होंने बताया कि कृषकों के किस्मों का संरक्षण उनके दुर्लभ गुणों की वजह से अति आवश्यक है। इस अधिनियम द्वारा कृषक किस्मों को बौद्धिक संपदा सुरक्षा का लाभ मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश में किसानों की पारंपरिक अच्छी किस्मों की रक्षा और क्षेत्र में पारंपरिक किस्मों की जैव-चोरी को रोकने में यह अधिनियम बेहद कारगर होगी।