भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय को हाल में पंजीकृत उसकी दो सूकर नस्लों- बांडा एवं पूर्णिया के लिए वृहस्पतिवार को पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदान किया I चूँकि किसी भी पशु नस्ल पर अनुसंधान, प्रसार एवं विकास नीति बनाने के लिए उसका पंजीकरण जरूरी है इसलिए अब इन नस्लों के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में काम बढ़ सकेगा I
झारखण्ड में ग्रामीणों के बीच सूकरपालन बहुत लोकप्रिय है और यहाँ सूकर आबादी आसाम के बाद सर्वाधिक है, 2019 की पशु जनगणना के अनुसार लगभग 12.8 लाख I किन्तु पहले झारखण्ड की अपनी कोई पंजीकृत सूकर नस्ल नहीं थी I
आइसीएआर मुख्यालय नयी दिल्ली में आयोजित एक विशेष समारोह में वृहस्पतिवार को आइसीएआर के उप महानिदेशक (पशुपालन) डॉ बीएन त्रिपाठी, भारत सरकार के पशुपालन आयुक्त अभिजीत मित्रा, राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल के निदेशक डॉ बीपी मिश्र तथा आइसीएआर की विशेष सचिव अलका नगीना अरोडा ने प्रमाणपत्र प्रदान कियाI केंद्रीय कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कार्यक्रम में ऑनलाइन भाग लिया I
लगभग एक दशक के शोध प्रयास के बाद बीएयू के पशु उत्पादन एवं प्रबंधन विभाग के वैज्ञानिक डॉ रविन्द्र कुमार द्वारा पंजीकृत/ खोजी गयी ये नस्लें किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हैं और झारखण्ड की ग्रामीण परिस्थितियों में न्यूनतम लागत पर आसानी से पाली जा सकती हैं I
पशु उत्पादन एवं प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष डॉ सुशील प्रसाद तथा राष्ट्रीय सूकर अनुसंधान केंद्र, गुवाहाटी के मुख्य वैज्ञानिक डॉ शांतनु बानिक बांडा नस्ल के पंजीकरण के लिए सह आवेदक थे जबकि डॉ शांतनु बानिक एवं झारखण्ड सरकार के वेटरनरी ऑफिसर डॉ शिवानन्द कांशी पूर्णिया नस्ल के लिए सह आवेदक थे क्योंकि उनके सहयोग एवं मार्गदर्शन से इस नस्ल की खोज एवं गुण निर्धारण का काम पूर्ण किया गया I पहले इन्हें देशी/ स्थानीय नस्ल के नाम से जाना जाता थाI अब देश में सूकर के पंजीकृत नस्लों की संख्या 11 हो गयी है I
डॉ रविन्द्र कुमार ने बताया कि बांडा नस्ल झारखंड राज्य के मुख्यतः रांची, गुमला, लोहरदगा, बोकारो, धनबाद, रामगढ, पश्चिम सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सिमडेगा एवं गोड्डा आदि जिलों में बहुतायत में मिलती हैI बांडा सूकर की छोटे आकार की नस्ल हैI इसका रंग काला, कान छोटे एवं खड़े, पेट बड़ा और गर्दन पर कड़े बाल होते हैI यह नस्ल एक वर्ष में करीब 20-30 किग्रा वजन की हो जाती है तथा एक बार में 3-5 बच्चे देने की क्षमता रखती हैI एक वयस्क बांडा का वजन औसतन 28-30 किलो होता हैI यह प्रजाति दूर तक दौड़ सकती है तथा सुदूर भ्रमण से जंगलों से भी खाने योग्य पोषण प्राप्त कर लेती हैI
पूर्णिया नस्ल मुख्य रूप से झारखण्ड के संथालपरगना क्षेत्र एवं बिहार के पूर्णिया एवं कटिहार जिलों में पायी जाती है I यह नस्ल माध्यम आकार और काले रंग की होती है I इसके बाल सधे और लम्बे होते हैं और ब्रश बनाने के भी काम आते हैं I एक सूअर पालने पर बिना विशेष लागत के साल में 10-12 हज़ार रु की आय हो सकती है I
बीएयू कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने इन नस्लों का पंजीकरण प्रमाणपत्र मिलने पर सम्बंधित वैज्ञानिकों को बधाई दी है तथा इसे झारखण्ड का गौरव बढ़ानेवाली उपलब्धि बताया I